Saturday, March 28, 2015

बैंकों और डाकघरों के खाते में जमा पैसे की किताब को ‘पास-बुक’ क्यों कहा जाता है?


बैंकों और डाकघरों के खाते में जमा पैसे की किताब को ‘पास-बुक’ क्यों कहा जाता है?

हालांकि पासबुक शब्द का इस्तेमाल ज्यादातर बैंकों की पुस्तक के रूप में होता है, पर दूसरे किस्म के हिसाब-किताब में भी पासबुक शब्द चलता है। जैसे पेंशन की पासबुक या दूध का हिसाब रखने की पासबुक। इसमें अंग्रेजी शब्द पास (क्रिया) और बुक (संज्ञा) का इस्तेमाल किया गया है। यानी बैंक और ग्राहक के बीच से गुजरने वाली किताब। जैसे-जैसे नेटबैंकिंग का प्रचलन बढ़ रहा है और बैंक स्टेटमेंट उसकी जगह ले रहा है, इसका इस्तेमाल कम होता जा रहा है।

सब्सिडी क्या है? यदि यह रियायत है तो फिर सरकार टैक्स क्यों लेती है?
इसका व्यावहारिक अर्थ है सहायता करना। यदि गरीब लोग अनाज खरीदने में असमर्थ हैं तो उन्हें सस्ता अनाज, सस्ती चीनी और ईंधन देना। सप्लीमेंट करना, जोड़ना वगैरह। सोलहवीं सदी में सब्सिडी शब्द का मतलब कराधान था। सामर्थ्य देखकर टैक्स लगाने की अवधारणा। पर बीसवीं सदी में इस शब्द का अर्थ है उद्योग-व्यापार और कारोबार को दी गई सहायता, ताकि माल तैयार करने और बेचने में सुविधा हो। फ्री मार्केट की अवधारणा है कि कारोबार पर कम से कम बंदिशें हों, पर सब्सिडी की अवधारणा राष्ट्रीय हित में कारोबार को सरकारी मदद देने की बात करती है। जैसे अमेरिकी किसानों को सरकार सब्सिडी देती है या चीन के उत्पादकों को सरकारी मदद मिलती है, जिससे वे दुनिया के बाजार में अपनी जगह बना सकें।
भारत में सरकार किसानों को खाद में सब्सिडी देती रही। उनसे बाजार कीमत से ज्यादा पर अनाज खरीदती है ताकि उनके आर्थिक हित सुरक्षित रहें। सरकारों की जिम्मेदारी दोतरफा होती है। वे टैक्स वसूल भी करती हैं और फिर सरकार पैसे को वहाँ देती हैं जहाँ उसकी ज़रूरत है। इसका उद्देश्य सामाजिक वरीयताओं को पूरा करना होता है।

चीजों के दाम 599, 699, 899  रुपए रखने के पीछे क्या अवधारणा है?
यह बाटा प्राइस है। इसकी शुरूआत बाटा कम्पनी ने की थी। इसका उद्देश्य यह था कि चीज़ की कीमत राउंड फिगर से थोड़ी कम रखी जाए ताकि वह कम लगे। पन्द्रह रुपए वाले जूते की कीमत चौदह रुपए पन्द्रह आने और नए पैसे की शुरूआत होने पर 14 रु 95 पैसे लिखने पर वह ज्यादा आकर्षक लगती थी। अब 500 की चीज 499 लिखने पर कुछ कम की लगती है।

बुढ़ापे में याददाश्त कमजोर क्यों हो जाती है?
समय बीतने के साथ स्नायु-कोशिकाएं थकान का शिकार होती जाती हैं और मेटाबोलिज्म के फलस्वरूप उनमें टॉक्सिन एकत्रित होता है। इससे उनकी क्रियाशीलता कम हो जाती है। याद रखना चूंकि स्नायु-क्रिया है, इसलिए बुढ़ापे में यह क्रिया कमजोर होती जाती है।

राष्ट्रपति भवन पर पहली बार तिरंगा कब फहराया गया?
14-15 अगस्त की रात में संसद भवन के सेंट्रल हॉल में तिरंगा फहराया गया। इसी कार्यक्रम में श्रीमती हंसा मेहता ने यह राष्ट्रीय ध्वज राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद को भेंट किया। इसके बाद 15 अगस्त की भोर में इसे वायसरीगल हाउस या वर्तमान राष्ट्रपति भवन के शिखर पर भी फहराया गया।
एक जानकारी यह भी है कि 16 अगस्त 1947 को सुबह साढे आठ बजे प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लालकिले के प्राचीर पर ध्वजारोहण किया था।  कोलकाता निवासी शेखर चक्रवर्ती ने अपने संस्मरणों ‘‘फ्लैग्स एंड स्टैम्प्स ’’ में लिखा है कि 15 अगस्त 1947 के दिन वायसराइल लॉज  (अब राष्ट्रपति भवन)  में जब नई सरकार को शपथ दिलाई जा रही थी तो लॉज के सेंट्रल डोम पर सुबह साढ़े दस बजे आजाद भारत का राष्ट्रीय ध्वज पहली बार फहराया गया था।  14 अगस्त 1947 की शाम को ही वायसराय हाउस के ऊपर से यूनियन जैक को उतार लिया गया था। इस यूनियन जैक को आज इंग्लैंड के हैम्पशायर में नार्मन ऐबी आफ रोमसी में देखा जा सकता है।

15 अगस्त 1947 को सुबह छह बजे की बात है। राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दिए जाने का कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम में पहले समारोहपूर्वक यूनियन जैक को उतारा जाना था लेकिन जब देश के अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने पंडित नेहरू के साथ इस पर विचार विमर्श किया तो उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि यह ऐसा दिन है जब हर कोई खुशी चाहता है लेकिन यूनियन जैक को उतारे जाने से ब्रिटेन की भावनाओं के आहत होने के अंदेशे के चलते उन्होंने समारोह से इस कार्यक्रम को हटाने की बात कही।  आर सी मोदी ने अपने संस्मरणों ‘‘इंडिपेंडेंस डे 1947 : 'दिल्ली' में लिखा है कि 15 अगस्त को दोपहर बाद राष्ट्रीय ध्वज को पहली बार सार्वजनिक रूप से सलामी दिए जाने का कार्यक्रम ‘‘वार मैमोरियल आर्च' (आज का इंडिया गेट) में आयोजित किया गया। जिस समय प्रधानमंत्री वहां झंडा फहरा रहे थे उसी समय साफ खुले आसमान में जाने कैसे इंद्रधनुष नजर आया। इस घटना का जिक्र  माउंटबेटन ने 16 अगस्त 1947 को लिखी अपनी 17वीं रिपोर्ट में भी किया है जिसे उन्होंने ब्रिटिश क्राउन को सौंपा था। उन्होंने रिपोर्ट में इंद्रधनुष के रहस्यमय तरीके से उजागर होने का जिक्र  किया.
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 15 फरवरी 2015 को प्रकाशित






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